सभी प्रकार की जांच

डायबिटीज के लिए आवश्यक जांच (टेस्ट)

रक्त में ग्लूकोज की जांच (Blood Glucose) –

सुबह खाली पेट,भोजन के दो घंटे बाद एवं शाम को भोजन से पहले खून की जांच करवाना चाहिए ( बिना दवा बंद किए)। अगर डायबिटीज कंट्रोल में नही है तो ब्लड शुगर टेस्ट एक-दो दिन में या आवश्यकतानुसार कराना चाहिए। डायबिटीज कंट्रोल में रहने पर ये जांच एक महीने में एक बार आवश्यक है ।

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ग्लायकोसायलेटेड हीमोग्लोबिन ( HbA1C) –

इस जांच से पिछले 3 माह का औसत कंट्रोल पता चलता है। करीब 6 माह में एक बार इस टेस्ट को अवश्य कराना चाहिए ।
सामान्य स्तर : 5.7 % या उससे कम
जोखिम स्तर : 5.7-6.4 %
डायबिटीज : 6.5 % या उससे अधिक

ह्रदय संबंधी जांच ( Cardiac Checkup) –

डायबिटीज के रोगी को हार्ट अटैक(ह्रदयाघात)और अन्य खतरे जैसे – कार्डियक फेलिअर एवम असामान्य धड़कन होने की संभावना सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा अधिक होती है । डायबिटीज के मरीजों मे बिना दर्द के भी हार्टअटैक हो सकता है। यह जरूरी है कि मरीज सीने का एक्स-रे, ईसीजी, इकोकार्डियोग्राफी एवं टी. एम. टी. की जांच रोग न होने पर भी 6 मास से 1 वर्ष में कराएं ।

गुर्दे की जांच (Renal Function Test) –

डायबिटीज में गुर्दे (Kidney) गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं। गुर्दे की बीमारी में शरीर में सूजन आ जाती है, मरीज का ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। पेशाब में एल्व्यूमिन का पाया जाना गुर्दे की बीमारी की शुरुआती पहचान है। पेशाब में माइक्रो एल्व्यूमिन के स्तर की जांच कर इसका जल्दी पता लगाया जा सकता है। खून में यूरिया या क्रिएटिनिन कि मात्रा बढ़ना बीमारी के बढ़ने का संकेत है। डायबिटीज नेफ्रोपैथी से बचाव के लिए डायलिसिस जैसी प्रक्रिया या गुर्दा प्रत्यारोपण का सहारा तब लेना पड़ता है, जबकि गुर्दे पूरी तरह से खराब हो जाते हैं। हालांकि यह सुरक्षित प्रक्रिया होती है, लेकिन इनमें सावधानियां बरतनी बेहद आवश्यक हैं। इन जांचों को साल में एक बार करना चाहिए।

आंखों की जांच (Eye Checkup & Fundus) –

समय-समय पर आंखों की जांच कराएं, यह जांच बच्चों में आवश्यक है। अगर आपको आंखों में दर्द , अंधेरा छाने जैसा लक्षण दिखाई दें तो तुरंत चिकित्सक से मिलें। डायबिटीज के मरीज को साल में कम से कम एक बार अपनी आंखों की जांच करानी चाहिए एवं चश्मे का नंबर तभी ले जब ब्लड शुगर कंट्रोल में हो । डायबिटीज जितने लम्बे समय तक रहता है , डायबिटीक रेटिनोपैथी की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है डायबिटीज होने के दस साल बाद हर तीन महीने पर आंखों की जांच कराएं। गर्भवती महिला अगर डायबिटीक है तो इस विषय में चिकित्सक से बात करें।

लिपिड प्रोफाइल टेस्ट (Lipid Profile Test) –

डायबिटीज के मरीजों में ह्रदयाघात (हार्टअटैक), पक्षाघात (लकवा), ब्लड प्रेशर, गुर्दे की बीमारी , आंखों की खराबी का मुख्य कारण कोलेस्ट्रोल के कुछ प्रकारों का बढ़ना या उनका संतुलन बिगड़ना है। लिपिड प्रोफाइल टेस्ट द्वारा इसका पता लगाया जा सकता है एवं दवाओं से कोलेस्ट्रोल नियंत्रित किया जा सकता है 

इंसुलिन पंप क्या है ?

इंसुलिन लेने के लिए एक और नया तरीका है इंसुलिन पंप द्वारा लेना । यह पंप एक छोटा मोबाइल फोन के समान होता है जिसके अंदर रेगुलर या रैपिड इंसुलिन की शीशी रखी जाती है इंसुलिन की शीशी से एक पतली प्लास्टिक ट्यूब द्वारा इंसुलिन शरीर के अंदर पहुंचता है ठीक वैसे ही जैसे आप सामान्य इंजेक्शन लेते हैं । इस में फर्क इतना है कि ट्यूब वहीं शरीर में लगा रहता है और 3 दिन में एक बार ही बदला जाता है । पंप को डोज की मात्रा के अनुसार सेट किया जाता है , ताकि जब आहार का समय है, तो पंप अधिक डोज निकलवाता है, (Bolus) और जब आहार का समय नहीं है तो पंप लगातार एक छोटा सा दो जारी रखता है यह लगातार डोज जारी रखता है, ये लगातार डोज आपके NPH या Glargine का स्थान लेता है, लगातार लगने वाला डोज (Basal Rate) को पहले से सेट कर सकते हैं। कुछ घंटों के लिए कम रखना (जैसे रोज भोर में जब शुगर बढ़े हुए होने की संभावना है )आप दिन में सभी बड़े और छोटे आहार(Meal & Snack) के लिए इसे ले सकते हैं , बिना अलग-अलग कई बार सुई लगाए। इस तरह पंप का प्रयोग करते हुए अधिक बेहतर नियंत्रण रख सकते हैं । परंतु पंप का पूरा फायदा लेने के लिए खून जांच दिन में 4-5 बार करके तथा कार्बोहाइड्रेट आहार के साथ तालमेल करते हुए इंसुलिन की खुराक को नियंत्रित करना होगा । पंप के ट्यूब इत्यादि फिलहाल काफी महंगे पड़ते हैं । अगर आप इस संबंध में और अधिक जानकारी चाहते हैं तो कृपया हमारी टीम से संपर्क करें।

डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic Neuropathy)

डायबिटीज न्यूरोपैथी , मधुमेह के दोनो प्रकार टाइप 1 और टाइप 2 में हो सकती हैं और जिन लोगों के ब्लड शुगर नियंत्रित नही हैं उनमें ये होना आम बात है । हालांकि न्यूरोपैथी के विभिन्न प्रकार, उन में भी हो सकते हैं , जिनका थोड़े समय के लिए ही मधुमेह हुआ था , ये सबसे ज्यादा उन लोगों में होते हैं जो एक दशक से मधुमेह से प्रभावित थे , और ये 40 साल से अधिक उम्र के लोगों में आम है , मधुमेह के साथ धूम्रपान करने वालों को विशेष रूप से जोखिम होता है । रक्त वाहिकाओं की क्षति भी डायबिटिक न्यूरोपैथी के लिए योगदान देती हैं , क्योंकि तंत्रिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषण नही मिल पाता है ।

डायबिटिक न्यूरोपैथी के लक्षण :

a. पैरों में खासकर पैर के निचले हिस्से में सुन्नता, झुनझुनी , तेज या जलनयुक्त दर्द , ऐंठन , छूने पर अतिसंवेदनशीलता और संतुलन या समन्वय में समस्याएं
b. रात में बार बार पेशाब के लिए उठना । मूत्राशय ने संक्रमण , नियंत्रण की कमी
c. शिशन उन्नत होने में परेशानी , वीर्यस्खलन , और यौन उत्तेजन में कमी
d. पसीना आने में अक्षमता त्वचा में सूखापन और फटी हुई एडियां , जिसके कारण फंगल संक्रमण बार बार होने की संभावना । अत्यधिक पसीना आना भी लक्षण है ।
e. धीरे-धीरे पेट खाली होना , इसको गैस्ट्रोप्रेसिस ( Gastropresis) कहा जाता है , जिसके कारण मितली , उल्टी या सूजन हो सकती हैं , छोटी और बड़ी आंत का सामान्य लयवध्य दबाव जिसको पेरिस्टोल्सिस (Peristalsis) के रूप में जाना जाता है , धीमा या अनियमित हो सकता है , जिसके कारण कब्ज या दस्त हो सकती है ।
f. खड़े होने पर चक्कर आना और बेहोश होना ।

सभी प्रकार की जांच

  • Serum C-Peptide Level
  • Insulin Levels
  • GAD-Antibody
  • D-Dimer
  • RA-Factor
  • CRP
  • HLA-B27
  • PT/INR/BT/CT
  • Hbs Ag
  • HIV
  • HCV
  • TB-PCR
  • Urine-Spot Sodium
  • Serum Testosterone
  • FSH
  • Serum Cortisol

HEART

DIABETES

KIDNEY

BONES

THYROID

NERVES

LIVER

ANAEMIA

INFECTION

Lipid Profile with Direct LDL

FBS, HbA1c, Microalbumin

BUN, Creatinine, BUN/Creatinine Ratio, Electrolytes, Uric Acid, Urine R/E

Vitamin D, Calcium, Phosphorus, Rheumatoid Factor

FT3, FT4, TSH

Vitamin B12

Bilirubin (Total, Direct, Indirect), SGOT, SGPT, ALP, GGT, LDH, Protein, Albumin, Globulin, A:G Ratio, HBsAg

Iron, TIBC, UIBC, % Saturation, Ferritin, Folic Acid

CBC, ESR

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

1.क्या टाइप 2 डायबिटीज ग्रस्त हर मरीज को दवा लेना जरूरी है ?

पहली बार डायबिटीज का निदान होने पर तुरंत दवा की जरूरत नहीं | क्योंकि स्वस्थ संतुलित भोजन व्यायाम और वजन घटाने से आपके रक्त में ग्लूकोज का स्तर कम हो सकता है | अगर ऐसा करने से फायदा ना हो तो बीमारी के बढ़ने के साथ-साथ आपको दवा की जरूरत पड़ सकती है |

2. यदि मैं अपनी दवा की एक खुराक लेना भूल जाऊं तो मुझे क्या करना चाहिए ?

आपको डॉक्टर के निर्देश अनुसार नियमित रूप से दवा लेनी बहुत जरूरी है पर यदि आप कभी दवा की खुराक लेना भूल जाएं तो इसकी दोगुनी खुराक कभी ना लें इसके लिए आप अपने डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं |

3. क्या मैं अपनी दवा का समय बदल सकता हूं ?

आप अपनी दवा लेने का समय नहीं बदल सकते हर दवा का अपना खास असर/प्रभाव होता है और इसलिए इसे अपने निर्धारित समय पर ही लेना चाहिए |

4. लक्ष्य प्राप्त हो जाए तो क्या दवा या इंसुलिन लेना पूरी तरह बंद किया जा सकता है?

दवाओं का उपयोग डायबिटीज मरीज के रक्त में ग्लूकोज स्तर पर नियंत्रण रखने के लिए किया जाता है |
यह शरीर में मौजूद डायबिटीज के असली कारण का उपचार नहीं है | बहरहाल जीवनशैली या आदतों में परिवर्तन करके लोग टॉमी दवाओं की खुराक में परिवर्तन किया जा सकता है और कई बार इन्हें पूरी तरह बंद करने की सिफारिश भी की जा सकती है लेकिन ऐसा केवल डॉक्टर की सलाह और देखरेख में ही किया जाना चाहिए |

5. इंजेक्शन ली गई तो त्वचा पर मुझे सूजन हो जाती है क्या यह इंसुलिन का विपरीत प्रभाव है ?

यदि आप सही तरीके से इंसुलिन इंजेक्शन नहीं लेते या एक ही जगह पर बार-बार इंजेक्शन लेते हैं तो आपको सूजन हो सकती | यह विपरीत प्रभाव नहीं आप सही तरीके से इंजेक्शन लेना सीखें |

6. यदि इंसुलिन को ठंडी जगह पर ना रखा जाए तो क्या होगा ?

यदि इंसुलिन को बताए गए तापमान से अधिक या कम तापमान पर लंबे समय तक रखा जाए तो इसकी पोटेंसी या शक्ति कम हो जाती है | इंसुलिन की कार्य क्षमता खत्म हो जाती है और वापस नहीं आती | इससे इंसुलिन की गुणवत्ता भी प्रभावित हो जाती है |

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